जोया फैक्टर के बाद ‘मेड इन चाइना’ साल की दूसरी ऐसी फिल्म है, जो बुक एडेप्टेशन हैं। दोनों किताबें तो बेस्ट सेलिंग होने का दावा करती रहीं, मगर उन पर बनी फिल्म फीकी रहीं। वह भी तब, जब पहले वाले के डायरेक्टर अभिषेक शर्मा थे। उनकी पकड़ सटायर पर रही है। दूसरी फिल्म के गुजराती में नेशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्म ‘रांग साइड राजू’ बना चुके मिखिल मुसाले हैं। मिखिल की वह फिल्म हिट एंड रन केस पर एक थ्रिलर थी और दर्शकों को खासी पसंद आई थी।
समझ से परे है कहानी की प्रोग्रेस
‘मेड इन चाइना’ भी मूल रूप से गुजरात में चाइना के जनरल जैंग की मौत से शुरू होती है। आरोप मैजिक सूप में मिलावट पर लगता है। उसका निर्माता नायक रघु (राजकुमार राव) है। बीवी रुक्मिनी (मौनी रॉय) साथ गुजरात में रहता है, जो अपने पति के सुख दुख की साथी है। पुराने स्टाफ नट्टू काका (संजय गोराड़िया) और सेक्सोलॉजिस्ट डॉ वर्धी (बमन ईरानी) की मदद से रघु का सूप का धंधा जनरल जैंग की मौत से पहले सही चल रहा था। उसका आइडिया भी उसे चीन जाकर आया था। उसमें उसकी मदद तन्मय भाई (परेश रावल) ने की थी। वह तेजी से गुरबत से उबर रहा था। अचानक जैंग की मौत के चलते उस रफ्तार पर तेज ब्रेक लग जाता है। फिर क्या होता है, फिल्म उस बारे में है।
फिल्म उद्यमी स्वभाव के युवा अंतरमन की ऊंची उड़ान को समर्पित है। यह एक ऐसे समय में आई है, जब भारत मंदी और बेरोजगारी से जूझ रहा है। नौकरियां कम हो रही हैं। विकल्प स्वरोजगार तक सिमटते जा रहे हैं। वैसे दौर में रघु जितनी आसानी से मैजिक सूप की बिक्री को अंडरग्राउंड ही सही काफी फैला लेता है, वह गले नहीं उतरती। कारोबार को खड़ा करने में एड़ियां घिस जाती हैं, वह तन्मय भाई के आइडिए और मोटिवेशनल स्पीकर चोपड़ा की स्पीच सुन सुनकर रघु बड़ा कारोबारी बनने की राह पर अग्रसर हो जाता है। इस तरह यह उद्यमशीलता के कॉन्सेप्ट का ही मजाक उड़ाती चली जाती है। सीबीआई अफसर के रोल में गुप्ता (चित्तरंजन त्रिपाठी) और शर्मा(अभिषेक बैनर्जी) की मिसकास्टिंग हो गई है। दोनों जनरल जैंग की मौत की गुत्थी ऐसे सुलझाते नजर आते हैं, जैसे कोई जिग्सॉ पजल सुलझा रहे हों।
प्रोड्युसर दिनेश विजन दरअसल राजकुमार राव की स्टारडम पर जरूरत से ज्यादा दांव लगा गए हैं। उन्हें लगा है कि स्त्री का हैंगओवर ‘मेड इन चाइना’ की कमजोर लिखावट को बचा लेगा। पर ऐसा नहीं हुआ है। उसने सक्षम कलाकारों राजकुमार राव, बोमन ईरानी और परेश रावल के किरदारों को भी सतही बना दिया है। राजकुमार राव ने डायलेक्ट सही पकड़ा है, मगर इमोशन के मामले में वे अपने पिछले स्केल को ही मैच नहीं कर पाए हैं। फिल्म की खोज नट्टु काका बने संजय गोराड़िया हैं। गीत संगीत सही है। राईटर नीरेन भट्ट के साथ मिखिल मुसाले घटनाक्रमों को दिखाने की हड़बड़ी में लगे हैं। चाइना के लोकेशन भी बस छूकर निकले गए हैं। फिल्म को खत्म करने की भी मेकर्स की जल्दी साफ लगी है।