इतिहास के इस पेपर में पास हुए आशुतोष गोवारिकर, संजय दत्त अब्दाली के रोल में एकदम क्रूर लगे

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर फिल्म बनाना आसान नहीं होता। जबर्दस्त रिसर्च करनी पड़ती है, ऐसी फिल्म बुननी होती है, जो आज के दौर में प्रासंगिक लगे और हां! मनोरंजक भी हो। ऐसा ना हो पाए तो सभी जानते हैं कि ज्यादातर लोगों के लिए इतिहास उबाऊ विषय है। आशुतोष गोवारिकर हिस्ट्री के इस पेपर में अच्छे अंकों से पास हो गए हैं।


14 जनवरी, 1761 को हुई पानीपत की तीसरी लड़ाई का रुख मराठा योद्धा सदाशिव राव भाऊ ने तय किया था। भले ही इस युद्ध में सदाशिव विजयी नहीं रहे, लेकिन उन्होंने आततायी अहमद शाह अब्दाली को विचलित ज़रूर कर दिया था। फ़िल्म उस दौर को जीवंत करती है, जिसमें गद्दी के लिए अपने करीबी भी पीठ पर वार करने से नहीं चूकते थे।


अर्जुन कपूर और कृति सेनन का अभिनय प्रशंसनीय है। दोनों ने अच्छी अदाकारी की है। अब्दाली, यानी संजय दत्त परदे पर क्रूर लगे हैं। सपोर्टिंग कास्ट ने भी प्रशंसनीय अभिनय किया है। निर्देशक के रूप में आशुतोष गोवारिकर सफल रहे हैं। फ़िल्म के हर डिपार्टमेंट पर उनका नियंत्रण साफ दिखाई देता है।


नितिन देसाई का कला निर्देशन फ़िल्म की विश्वसनीयता बढ़ाता है,जबकि नीता लुल्ला ने उस दौर की वस्त्र संरचना को हूबहू उकेरा है। अजय अतुल का संगीत कर्णप्रिय है। खासकर- "सपना है सच है' और ‘मन में शिवा’ अच्छे गीत हैं। वार सीन में सीके मुरलीधरन का कैमरा वर्क याद रह जाता है। 


एडिटिंग की बात करें तो फ़िल्म का दूसरा हाफ तेज़ रफ्तार का है, जबकि पहले हिस्से में कई बार बोरियत होती है। संपादन पर और काम किया जा सकता था। वीएफएक्स प्रभावित नहीं करते। कुछ संवाद मराठी में हैं, जिन्हें समझना थोड़ा मुश्किल है, जबकि कोरियोग्राफी शानदार है।


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